भील इतिहास / bhil history

                       Bhil history 

भीलों का अपना एक लंबा इतिहास रहा है, कुछ इतिहासकारो ने भीलों को द्रविड़ो से पहले का भारतीय निवासी माना तो कुछ ने भीलों को द्रविड़ ही माना है। मध्यकाल में भील राजाओं की स्वतंत्र सत्ता थी । 

करीब 11 वी सदी तक भील राजाओं का शासन विस्तृत क्षेत्र में फैला था । 

छठी शताब्दी में एक शक्तिशाली भील राजा का पराक्रम देखने को मिलता है जहां मालवा के भील राजा हाथी पर सवार होकर विंध्य क्षेत्र से होकर युद्ध करने जाते है । इडर में एक शक्तिशाली भील राजा हुए जिनका नाम राजा मांडलिक रहा । 

राजा मांडलिक ने ही गुहिल वंश अथवा मेवाड़ के प्रथम संस्थापक गुहादित्य को अपने इडर राज्य मे रखकर संरक्षण किया । 

गुहादित्य राजा मांडलिक के राजमहल मे रहता और भील बालको के साथ घुड़सवारी करता , राजा मांडलिक ने गुहादित्य को कुछ जमीन और जंगल दिए , आगे चलकर वही बालक गुहादित्य इडर साम्राज्य का राजा बना । 

गुहिलवंश की चौथी पीढ़ी के शासक नागादित्य का व्यवहार भील समुदाय के साथ अच्छा नहीं था इसी कारण भीलों और नागादित्य के बीच युद्ध हुआ और भीलों ने इडर पर पुनः अपना अधिकार कर लिया । बप्पा रावल का लालन - पालन भील समुदाय ने किया और बप्पा को रावल की उपाधि भील समुदाय ने ही दी थी । 

बप्पारावल ने भीलों से सहयोग पाकर अरबों से युद्ध किया । खानवा के युद्ध में भील अपनी आखरी सांस तक युद्ध करते रहे ।


चित्र:मेवाड़ चिन्ह.jpeg

मेवाड़ चिन्ह महाराणा प्रताप और राणा पूंजा भील

बाबर और अकबर के खिलाफ मेवाड़ राजपूतो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध करने वाले भील ही थे। मेवाड़ और मुगल समय में भील समुदाय को उच्च ओहदे प्राप्त थे,तत्कालीन समय में भील समुदाय को रावत,भोमिया और जागीरदार कहा जाता था। राणा पूंजा भील और महाराणा प्रताप की आपसी युद्ध नीती से ही मेवाड़, मुगलो से सुरक्षित रहा। हल्दीघाटी का युद्ध मे राणापूंजा जी और उनकी भील सेना का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 

इसी कारण मेवाड चिन्ह मे एक तरफ महाराणा प्रताप जी और एक तरफ राणापूंजा भील जी अर्थात राजपूत और भील का प्रतिकचिन्ह अस्तित्व मे आया। 

मुगलों के बाद जब मराठो ने मेवाड़ पर आक्रमण किया तब भी भील मेवाड़ के साथ खड़े रहे । 

भील , मराठा शासक वीर शिवाजी के साथ खड़े रहें। भील और राजपूतो मे खान-पान होता रहा ।


गुजरात के डांग जिले के पांच भील राजाओं ने मिलकर अंग्रेज़ो को युद्ध में हरा दिया,लश्करिया अंबा में सबसे बड़ा युद्ध हुए, इस युद्ध को डांग का सबसे बड़ा युद्ध कहा जाता है । 

डांग के यह पांच भील राजा भारत के एकमात्र वंशानुगत राजा है और इन्हें भारत सरकार की तरफ से पेंशन मिलती हैं , आजादी के पहले ब्रिटिश सरकार इन राजाओं को धन देती थी ।


गुजरात में 1400 ईसा पूर्व के दौरान भील राजा का शासन । गुजरात केइडर ,डांग, अहमदाबाद और चांपानेर पावागढ़ में लंबे समय तक भील राजाओं का शासन रहा था।

राजस्थान में कोटा,बांसवाड़ा,डूंगरपुर,मनोहरथाना, कुशलगढ़,भीनमाल, प्रतापगढ़,भोमटक्षेत्र और जगरगढ़ में भील राजाओं का शासन लंबे समय तक रहा था। राजस्थान में मेवाड़ भील कॉर्प है।

भील लोग आम जनता की सुरक्षा करते थे और यह भोलाई नामक कर वसूलते थे । 

शिसोदा के भील राजा रोहितास्व भील रहे थे।


मध्यप्रदेश में मालवा पर भील राजाओं ने लंबे समय तक शासन किया , आगर ,झाबुआ,ओम्कारेश्वर,अलीराजपुर पर भील राजाओं ने शासन किया । 

इंदौर स्थित भील पल्टन का नाम बदलकर पुलिस प्रशिक्षण विद्यालय रखा , मध्यप्रदेश राज्य गठन के पूर्व यहां भील सैना प्रशिक्षण केंद्र था। मालवा कीमालवा भील कॉर्प्स थी ।


छत्तीसगढ़ का प्रमुख शहर भिलाई का नामकरण भील समुदाय के आधार पर ही हुआ है।


महाराष्ट्र में कई भील विद्रोह हुए जिनमें खानदेश का भील विद्रोह प्रमुख रहा ।


1661 में राजपूतों ने भीलों के साथ मिलकर औरंगज़ेब को हरा दिया ।

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Bhil photo   

                                                    


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